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लेखनी प्रतियोगिता -26-May-2023 सरहद के पार




शीर्षक = सरहद के पार




"सरहद पार रोजी रोटी कमाने के लिए जाना जरूरी है, क्या? इतने सालो से सब अच्छे से चल तो रहा था, भगवान की दया से एक रात भी तो कभी भूखे नही सोये है हम लोग, जितना भी खाया अच्छा और पेट भर खाया " रेवती ने पास लेटे अपने पति रितेश से कहा


रितेश उसकी बात सुन, उठ कर बैठा और उसका सर अपने सीने पर रख कर उसका सर सहलाते हुए बोला " रेवती, मेरी जान, मैं तुम्हारे मन का हाल समझ सकता हूँ, मैं नही समझूंगा तो फिर कौन समझेगा "


"तो फिर, सब कुछ जानते हुए भी आप इतनी दूर सरहद के पार क्यूँ जा रहे है? मुझे और अपने बच्चों को छोड़ कर यहां भी तो सब अच्छा जा रहा है " रेवती ने रितेश की बात पूरी होने से पहले ही कह दी अपनी बात


"रेवती, तुम तो इस तरह न कहो, तुम तो सब कुछ जानती हो फिर भी इस तरह कह रही हो, घर के सारे हालात तुम्हारे सामने है, तुम्हे तो मेरी हिम्मत बढ़ाना चाहिए थी और तुम इस तरह कह रही हो" रितेश ने कहा

"लेकिन मैं क्या करू? आपको हिम्मत देने के लिए मुझमे भी तो हिम्मत का होना जरूरी है, मैं खुद ही आपकी जुदाई की खबर बर्दाश्त नही कर पा रही हूँ तो आपको किस तरह हिम्मत दू, मैं जानती हूँ पिछले कुछ महीनों से हमारे हालात अच्छे नही चल रहे है, दुकान पर भी ज्यादा लोग नही आ रहे है और महीना है कि आँखे मीचे चले आ रहा है, दुकान का किराया, घर का खर्च बच्चों की पढ़ाई, लेकिन इन सब का हल परदेस सात समुन्द्र पार जाकर तो नही निकल सकता है, और तो और सरद्द के पार यानी की एक देश से दुसरे देश जाना कोई मुफ्त का काम तो नही है, उसके लिए भी तो काफी पैसे लगते है, इससे अच्छा है की वो पैसे आप यही कही अपने काम में लगा दीजिये इस तरह आपको जाना भी नही पड़ेगा और हमारा घर भी चलता रहेगा " रेवती ने कहा


"काश की ऐसा हो पाता, मेरे पास अगर इतने पैसे होते तो मैं अपना खुद का कारोबार कर लेता, अपनी ही एक किराने की दुकान खोल लेता बड़ी सी जिस तरह और लोगो ने खोल ली है, लेकिन बदकिस्मती से मेरे पास इतना पैसा नही है

मेरे लिए भी आसान नही है, तुम सब को छोड़ कर जाना, लेकिन क्या करू तुम्हारा पति होने के साथ साथ अपने बच्चों का बाप भी हूँ, उन्हें यूं पैसे के लिए लरस्ता नही देख सकता हूँ, आज काजल और सोनी छोटी है  आने वाले कुछ सालो में शादी की उम्र की हो जाएंगी, बाप होने के नाते उनके लिए मुझे ही तो सोचना है, कल को पैसे की वजह से उनकी शादी में कोई रूकावट आयी तो सब मुझे ही तो गाली देंगे की बाप होने का फ़र्ज़ भी अदा नही कर सका, दो बेटियों में से एक की भी अच्छे से शादी नही कर सका, तुम तो जानती ही हो आज कल लड़के वालों की कितनी डिमांड हो गयी है


और तुम, तुम्हारे भी तो कितने अरमान थे शादी के समय उन्हें भी तो मुझे ही पूरा करने है, और ये सब पैसे से ही तो होगा यहां रहा तो  तुम लोगों की जरुरत भी अच्छे से पूरी नही करपाऊंगा, कुछ साल की तो बात है यूं निकल जाएंगे और देखना सब काम हो जाएंगे मुझे पूरा यकीन है, मैं खूब मेहनत करूँगा ताकि जल्द से जल्द से तुम लोगो के पास वापस लोट आउ


और अब तो मोबाइल का जमाना है, अब सरहद पार बैठे इंसान से आमने सामने बात हो सकती है, देखना मैं तुम्हे रोज फ़ोन करूँगा दुबई से " रितेश ने कहा उसे समझाते हुए


"अब आपने सब कुछ पहले से सोच ही लिया है, तो मैं क्या कह सकती हूँ, सेह लूंगी आपकी जुदाई का गम अगर आपको लगता है, आप से दूर रहकर हम लोगो की जिंदगी बदल सकती है " रेवती ने कहा


"इस तरह न कहो रेवती, मेरे लिए भी आसान नही लेकिन तुम सब मेरी जिम्मेदारी हो तुम्हे खुश रखना मेरा फर्ज़ है, मुझे सिर्फ पति नही पिता बन कर भी सोचना है, मुझे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देनी है, और ये सब आज के दौर में पैसे के बिना असम्भव सा है

मुझे ये परदेस का सफर तय करना ही होगा, और तुम मेरा भर पूर साथ दोगी एक अच्छी और सच्ची हमसफ़र की तरह, मेरी कमी कभी मेरे बच्चों को महसूस नही होने दूगी, तुम उनकी अच्छी परवरिश करोगी चाहे मैं पास रहू या ना रहू, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है, तुम हो इसलिए ही इतना बड़ा कदम उठा रहा हूँ वरना मेरे लिए आसान नही होता " रितेश ने रेवती को कसके से अपनी बाहों में जकड़ते हुए कहा


"अब मैं क्या कहू? आपकी बातों ने मेरे मूंह पर ताला सा लगा दिया है, बस इतना ही कहूँगी कि जल्द से जल्द आने की कोशिश करना सरहद पार से सुना है जिसको परदेस का पानी एक बार भा जाता है वो फिर पलट कर अपने देश कभी नही आता, याद रखना आपकी ये रेवती हर दम आपके इंतज़ार में आँखे बिछाये बैठी रहेगी," रेवती ने कहा


रितेश ने उसे दोबारा से कसके अपनी बाहों में जकड़ा और बोला " नही, भले ही मेरी मजबूरी मुझे सरहद पार ले जा रही है, लेकिन मेरी जीने की वजह तो तुम लोग हो भला कोई अपने जीने की वजह को कैसे भुला कर जिन्दा रह सकता है, मुझे ख़ुशी है कि तुमने इजाजत दे दी वरना तुम्हे नाराज कर और तुम्हारी बिना इजाजत जाना मेरे लिए मौत से बदतर होता "


"खामोश, इस तरह न कहिये मरे आपके दुश्मन " रेवती ने रितेश के मूंह पर ऊँगली रखते हुए कहा और फिर दोनों एक दुसरे में कही ख़ो से गए

कुछ दिन बाद रितेश बाहर सरहद के पार चला गया, और रेवती ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई, कुछ परेशानियां उठाने के बाद आखिर कार रितेश को अच्छा काम मिल गया, दोनों रात को खूब बाते करते थे, रेवती ने रितेश की गैर मौजूदगी में अपनी दोनों लड़कियों और एक बेटे की अच्छे से परवरिश की और फिर दस साल की जुदाई के बाद आखिर कार वो दिन आ ही गया ज़ब रेवती अपने सरहद पार से आये अपने पति रितेश की राह में पलके बिछाये बैठी उसकी राह देख रही थी, और उसका इंतज़ार खत्म हुआ और दोनों आज रूबरू हो गए थे एक दुसरे के, बेटियां भी बड़ी हो गयी थी एक की तो शादी भी थी उसी की शादी के लिए रितेश आया था छुट्टी पर


उस रात दोनों ने खूब सारी बाते की, आखिर कार जिस मकसद के लिए रितेश ने सरहद पार जाने का फैसला किया था उसमे वो कामयाब रहा उसका त्याग और समर्पण उसके अपनों की जिंदगी में खुशहाली ले आया और एक पिता को क्या चाहिए होता है 

समाप्त.....


प्रतियोगिता हेतु 

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6 Comments

Sushi saxena

04-Jun-2023 02:58 PM

Nice one

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Alka jain

04-Jun-2023 12:46 PM

V nice 👍🏼

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वानी

01-Jun-2023 07:05 AM

Nice

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